कच्ची उम्र की पक्की नौकरी

स्कूल से आते ही उस दिन लड़का देर तक चिल्लाता रहा कि उसे पॉकेट मनी चाहिए ही चाहिए!क्योंकि उसके सभी सहपाठियों को उनके पिता पॉकेट मनी देते हैं!
उसका माली पिता बड़ी मुश्किल से उसके लिए अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाई के लिए खर्च जुटा पाते थे। वे अपनी असमर्थता से व्याकुल होकर, बिना खाए-पिए हताशा में घर से बाहर निकल बस स्टैंड की तरफ जाने वाली गली में बढ़ गए।
इधर हल्ला मचा कर, थक कर लड़का भी रूठा-सा, घर के सामने मैदान में आ गया और किनारे रखे बड़े पाईप पर बैठकर सुबकने लगा। थोड़ी दूरी पर नगर निगम द्वारा रखे गए कचरे के कंटेनर के पास कचरा चुनती, कुछ-कुछ बीनती, बैठी लड़की जो उसी के हमउम्र और उसकी पड़ोसन भी थी, उसके सुबकने की आवाज सुन पास आकर खड़ी हुई।
“क्या हुआ रे, काहे रोता, किसी ने मारा है क्या?”
“मुझे स्कूल नहीं जाना है!”
“क्यों नहीं जाना ..?? बस्ता लेकर स्कूल ड्रेस में तू साहेब जैसा बड़ा अच्छा लगता है!”
“साहेब जैसा, हुँह! खाली-पीली फोकटिया साहेब, सभी बच्चों को घर से पॉकेट मनी मिलता है, वे लोग सब साथ में बाहर जाते हैं। मैं वहां अकेला….!”
“अच्छा ये बात!” लड़की सयानी बनकर उसकी बात सुनकर… फिर बोली…
“तुझे मालूम है ?? कि मैं कचरे बीन कर रोज साठ रूपए कमाती हूँ !!
“साठ रुपए रोज, इस कचरे से?” कहते हुए उसने कचरे के कंटेनर की ओर देखा।
“हाँ, ऐसे बहुत सारे कचरे के डिब्बे में जाकर काम की चीज ढूंढती, बोरा भरकर बीनती और कबाड़ी को तुलवा आती!”
“लेकिन मैं तेरे जैसे कचरा बीनने तो नहीं जा सकता!”
“तू मेरे लिए काम करें तो रोज के बीस रुपए तुझे दे सकती हूँ।”
“तेरे लिए काम.. मैं करूं? जा भाग इधर से, नहीं तो मार खाएगी!”
“मुझे मारेगा! अच्छा सुन, मास्टर बनकर पीटेगा तो पीट लेना, मार खा लूंगी।”
“मैं मास्टर!”
“तू रोज स्कूल में जो भी पढ़ कर आएगा, बस वही सब मुझे रोज पढ़ा देगा तो बदले में रोज के बीस रूपए दूंगी।”
उस कचरा बीनने वाली लड़की ने बड़ी ही मासूमियत से कहा !!
अच्छा! “ट्यूशन पढ़ने को बोल रही है, तो सीधे-सीधे बोल नहीं सकती! चल आज से ही पढ़ाना शुरू करता हूँ, यहीं रूक, अभी अपना बस्ता लेकर आता हूँ।” कहता हुआ हौसलों से भरा लड़का तेजी से अपने घर की ओर दौड़ पड़ा।
लड़का आज पहले दिन बीस रुपए पाकर बहुत खुस हुआ आज उसे लग रहा था कि कच्ची उम्र में उसे किसी ने उसे पक्की नौकरी दे दी है।